Saturday, October 02, 2010

Closing Dialogues from Judgement at Nuremberg


Ernst Janning
: Judge Haywood... the reason I asked you to come: Those people, those millions of people... I never knew it would come to that. You must believe it, You must believe it!

Judge Dan Haywood: Herr Janning, it "came to that" the first time you sentenced a man to death you knew to be innocent.


(स्टैनली क्रैमर की बेहद प्रभावशाली फ़िल्म 'जजमेंट एट न्यूरमबर्ग' से; यूट्यूब की इस क्लिप में फ़िल्म का आखिरी सीन है जिसके एकदम अंत में वे संवाद हैं जो ऊपर उद्धृत किये गए हैं. वैसे पूरी फ़िल्म यूट्यूब पर मौजूद है.)

Sunday, September 19, 2010

बर्मिंघम सन्डे

अमेरिका के दक्षिणी राज्य अलाबामा के शहर बर्मिंघम में नागरी अधिकार आन्दोलन की सरगर्मियों का केंद्र सिक्सटीन्थ स्ट्रीट बैप्टिस्ट चर्च था. डॉ मार्टिन लूथर किंग समेत अन्य प्रमुख नेता वहाँ सभाएँ कर चुके थे. अलाबामा और अन्य दक्षिणी राज्य नस्ली पृथक्करण (Racial Segregation) दूर किये जाने के प्रयासों का हर तरह से विरोध कर रहे थे. गवर्नर जॉर्ज वैलेस तो यहाँ तक कह चुके थे कि इन प्रयासों को रोकने के लिए 'अलाबामा को चंद फर्स्ट-क्लास जनाज़ों की ज़रूरत है'.
रविवार, 15 सितम्बर 1963 को कालों के इस चर्च में सुबह दस बजकर बाईस मिनट पर भयंकर बम विस्फोट हुआ जिसमें चार किशोर उम्र की लड़कियों की मृत्यु हो गई. इस घृणित कृत्य के पीछे यूनाईटेड क्लैंस ऑफ़ अमेरिका नाम के नस्लवादी आतंकी संगठन का हाथ था.
वैसे तो इस हृदयविदारक घटना को कई अमेरिकी कलाकारों ने अपने तईं याद किया है पर जोअन बाएज़ का यह गीत 'क्लास अपार्ट' है. संयोग से इस वीडियो के साथ गीत के बोल भी मौजूद हैं पर इसके लिए गीत यूट्यूब पर चलाना होगा.
उन चार लड़कियों की शहादत ने आन्दोलन को और मज़बूत किया और एक साल के भीतर ही ऐतिहासिक सिविल राइट्स एक्ट ऑफ़ 1964 पारित हुआ.


Sunday, August 29, 2010

डॉ. मार्टिन लूथर किंग का पुनर्जन्म

ग्लेन बेक और सेरा पेलिन ओबामा के विरोध में उभर रहे घोर दक्षिणपंथी और नस्लवादी आन्दोलन 'टी पार्टी मूवमेंट' का पब्लिक फेस हैं. सेरा पेलिन, जो पिछले चुनावों में रिपब्लिकन पार्टी की उप-राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार थीं, कंज़र्वेटिव अमेरिकी मीडिया की चहेती हैं . जनाब ग्लेन बेक राजनीतिक विश्लेषक हैं और वे भी कंज़र्वेटिव मीडिया की आँखों के तारे हैं.. बेक साहब फ़ॉक्स न्यूज़ चैनल पर अपना एक कार्यक्रम चलाते हैं और 'अमेरिकनिज्म' के नाम पर हर प्रगतिशील विचार/व्यक्ति को गालियाँ देते रहते हैं. इन दोनों महान हस्तियों की अगुवाई में शनिवार, 28 अगस्त को वाशिंगटन डीसी के लिंकन मेमोरियल एक रैली आयोजित की गई थी जिसमें हजारों लोग शामिल हुए. कहने को अराजनीतिक इस रैली को नाम दिया गया था 'रेस्टोरिंग औनर'; और ज़ाहिर है कि औनर की इस पुनरुत्थानवादी थीम के केंद्र में धार्मिक राष्ट्रवाद है. पर सबसे मज़े की बात यह है कि यह रैली उसी दिन (28 अगस्त) और उसी जगह (लिंकन मेमोरियल) आयोजित की गई जहाँ 1963 में डॉ मार्टिन लूथर किंग ने अपना प्रसिद्द 'आइ हैव अ ड्रीम' भाषण दिया था. अब तक मुझे लगता था कि अप्रोप्रिएशन की कोशिशें सिर्फ हमारे ही देश में होती हैं. यह वीडियो इस विरोधाभास को बहुत अच्छे ढंग से प्रस्तुत करता है.




Tuesday, June 16, 2009

लिट्ल मोर आडॅसिटी

बिल माअर अमेरिका के शेखर सुमन हैं. या ऐसे भी कहा जा सकता है कि शेखर सुमन भारत के बिल माअर हैं. माअर का टॉक शो 'पॉलिटिकली इनकरेक्ट' नब्बे के दशक में खासा लोकप्रिय रहा है. अमेरिकी समाज से धार्मिक कट्टरता दूर करने, वैज्ञानिक और तार्किक सोच को बढ़ावा देने के लिए शुरू किये गए दि रीज़न प्रोजेक्ट से भी वे जुड़े हैं.
गड्ड-मड्ड राजनैतिक विचारों के बावजूद बिल माअर की व्यंग्य-दृष्टि काबिल-ए-तारीफ़ है. आजकल वे एचबीओ पर एक कार्यक्रम 'रियल टाइम विद बिल माअर' कर रहे हैं. इसके ताज़ातरीन प्रसारण में उन्होंने राष्ट्रपति ओबामा को निशाना बनाया. अमेरिकन टेलिविज़न पर ओबामा के छाये रहने की बात से मुझे उस दौर की याद आ गयी जब प्रधानमंत्री राजीव गाँधी दूरदर्शन पर छाये रहते थे. वास्तविक मुद्दों को सुलझाने में ओबामा के ढुलमुल रवैये को लेकर माअर ने उनकी ज़बरदस्त खिंचाई की है और उन्हें थोड़ा 'बुशपन' लाने की सलाह भी दी है.


और हाँ, संस्थागत धर्म के कटु आलोचक माअर ने पिछले साल एक डॉक्युमेंटरी रिलिग्युलस भी बनाई थी जो काफी चर्चित हुई.

Sunday, May 03, 2009

गीत और संघर्ष के 90 साल

आज पीट सीगर 90 साल के 'जवान' हो गए. फ़रवरी में उनके ग्रैमी अवार्ड जीतने पर में यह पोस्ट किया था.
आज फिर उनको सलाम करते हुए सुनते हैं 'ग्वान्तानामेरा'. वैसे तो इस स्पैनिश गीत को कई अमेरिकी और लातिन अमेरिकी कलाकारों ने गाया है मगर मुझे सीगर का संस्करण सबसे ज्यादा पसंद है. शुरुआत में सीगर इस गीत के रचयिता होसे मार्ती के बारे में बताते हैं. और अपनी बेमिसाल 'कन्वर्सेशनल' शैली में इस गीत को गाते हुए इसके अंग्रेजी भावानुवाद से भी श्रोताओं को परिचित कराते हैं.पीपुल्स वीकली वर्ल्ड में सीगर के सम्मान में लिखा गया जॉन पिएतारो का आलेख यहाँ पढ़ा जा सकता है.

Wednesday, April 15, 2009

अब्राहम लिंकन के बहाने अशोकन फेयरवेल

अब्राहम लिंकन की गणना अमेरिका के महानतम राष्ट्रपतियों में होती है. गृह युद्ध के उथल-पुथल भरे दौर में राष्ट्रपति रहे लिंकन ने अलगाववादी दक्षिणी राज्यों के समूह (कंफेडरसी ) के खिलाफ संघ को विजय दिलाने में निर्णायक भूमिका निभाई. इसी अनुषंग में उन्हें अमेरिका में दास प्रथा को समाप्त करने के लिए भी याद किया जाता है. गत फ़रवरी में लिंकन की द्विशती मनायी गयी.
अमेरिका के प्रचलित इतिहास में गृह युद्ध भावनाओं को उभारने वाला अध्याय है. प्रचलित इतिहास इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि एक वह इतिहास भी है जिसे जन-इतिहास या पीपुल्स हिस्ट्री कहा जाता है. महान अश्वेत नेता फ्रेडरिक डगलस ने लिंकन के बारे में कहा था कि "विशुद्ध दासता-विरोधी दृष्टिकोण से देखा जाए तो लिंकन मंद, रूखे, सुस्त और उदासीन प्रतीत होते हैं. मगर देश की जन-भावना के हिसाब से नापा जाए- वह भावना जिस पर ध्यान देने के लिए एक राजनीतिज्ञ के तौर वे बाध्य थे- तो वे तेज़, उत्साही, रैडिकल और दृढ़संकल्प थे."
केन बर्न्स ने गृह युद्ध पर बड़ी शानदार डॉक्युमेंटरी बनायी है. पीबीएस चैनल पर 1990 में हुआ इसका प्रसारण चार करोड़ लोगों ने देखा और आज भी इसकी गिनती पीबीएस के सर्वाधिक लोकप्रिय प्रसारणों में होती है.इस डॉक्युमेंटरी में एक धुन पार्श्व में कई बार सुनाई देती है और सुनने वाले को अवसाद से भर देती है. जे उन्गर द्वारा रचित इस धुन का नाम 'अशोकन फेयरवेल' है; यह एक शोकगीत है. ये एकल वायोलिन से शुरू होती है और बाद में गिटार का स्वर भी इसमें जुड जाता है.
यूट्यूब पर अशोकन फेयरवेल के कई संस्करण मौजूद हैं. यहाँ सुनते/देखते हैं वह संस्करण जो किसी ने लिंकन को श्रद्धांजली के तौर पर पोस्ट किया है. 144 सालों पहले आज ही के दिन अब्राहम लिंकन की हत्या हुई थी.


Friday, March 27, 2009

जॉन होप फ्रैंकलिन का निधन


गत 25 मार्च को अमरीकी इतिहासकार जॉन होप फ्रैंकलिन का 94 वर्ष की उम्र में निधन हो गया. अमेरिकी इतिहास में अश्वेतों को उनका उचित स्थान दिलाने में फ्रैंकलिन का महती योगदान है. नस्लवादी पूर्वाग्रह से ग्रस्त अमेरिका के दक्षिणी राज्य ओक्लाहोमा में पैदा हुए फ्रैंकलिन ने अश्वेतों के प्रति होने वाले भेद-भाव और दुर्व्यवहार को स्वयं अनुभव किया था. ऐसा ही एक कटु अनुभव उस समय का है जब बचपन में उन्होंने एक नेत्रहीन महिला को सड़क पार करने में मदद करने की कोशिश की. जब उन्होंने यह बताया कि वे अश्वेत हैं तो उस महिला ने घृणा से उनका हाथ झटक दिया.

अमेरिका के दक्षिणी राज्यों में वह जिम क्रो कानूनों का दौर था.  जिम क्रो कानूनों के अनुसार सरकारी स्कूलों, सार्वजनिक शौचालयों, बसों, ट्रेनों, रेस्तराँ और अन्य सार्वजनिक स्थलों पर श्वेत और अश्वेत लोगों के लिए अलग व्यवस्था थी. ये कानून कहने को तो अश्वेतों को 'पृथक मगर बराबर' (सेपरेट बट ईक्वल) दर्जा देते थे मगर मूलतः ये नस्लवादी मानसिकता का प्रतीक थे. 

'ब्राउन विरुद्ध बोर्ड ऑफ़ एजूकेशन' केस को बीसवीं सदी के अमेरिकी इतिहास में मील का पत्थर माना जाता है.  अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट द्वारा 1954 में दिए गए इस केस के फैसले में श्वेत और अश्वेत बच्चों के लिए अलग स्कूल व्यवस्था को गैर-बराबरी पर आधारित घोषित कर समाप्त किया गया.  इस ऐतिहासिक फैसले ने नागरी अधिकार आन्दोलन के लिए ज़मीन तैयार की.  इस मुक़दमे के लिए अश्वेत समुदाय की ओर से युक्तिवाद और तर्क सामग्री तैयार करने में फ्रैंकलिन की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही. 

1947 में प्रकाशित उनकी पुस्तक 'फ्रॉम स्लेवरी टू फ्रीडम' आज भी अमेरिका में अश्वेत समुदाय के इतिहास का महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ मानी जाती है. 1995  में उन्हें अमेरिका के सर्वोच्च नागरी अलंकरण 'प्रेसिडेंट्स मेडल ऑफ़ फ्रीडम' से सम्मानित किया गया.

 

 

चित्र: नेशनल आर्काइव्ज़ एंड रिकार्ड्स एडमिनिस्ट्रेशन (यू एस ए) से साभार.